सपनापूंजीवाद के ऐतिहासिक विकासक्रम में व्यक्ति, व्यक्ति-चेतना, वैयक्तिकता, व्यक्तिवाद का विकास हुआ है. या यों कह लें यह पूंजीवाद जीत है, आधुनिक होने की पहली शर्त भी. इस व्यक्तिनिष्ठता में अलगाव है अकेलापन नहीं, नकारात्मक क्षरण नहीं सकारात्मक शक्तिसम्पन्नता है. इयत्ता-चेतना के साथ साहचर्य, साथी,सपने,लक्ष्य,संकट,संघर्ष व्यक्ति पूर्णता की परिधि को पूरा करते हैं. आज पुनः मेरी एक छोटी कविता प्रस्तुत है-
सुबह की धुंध में चलते हुए
उलझते कदमों ने महसूस किया-
शब्द कम पड़ने लगे हैं. सिरसिरा रहा है नसों मे
एक पूरा सदेह सपना.
कांपते हाथों से मैंने
झुककर उठा लिए हैं
सारे जोखिम
(सदेह सपने के लिए)
और थपथपाकर छोड़ दिया है
बेआवाज़ आश्वासनों को.
आज ही भेजा है उसने
अक्षरों में लिपटा
दूरगामी सहलाता स्पर्श
इधर-उधर ठूंसकर भरे
गये अछोर समर्थन, अनकहे
दरम्यानी निश्छल एकांत
ढ़ेर सारा अछूता प्यार.
आँखों में उतराने लगी है
स्वप्निल तरलता
हाँ, बधने लगी है मुट्ठी
अब तो
निहत्था मैं भी नहीं.
एक पूरा सदेह सपना.
कांपते हाथों से मैंने
झुककर उठा लिए हैं
सारे जोखिम
(सदेह सपने के लिए)
और थपथपाकर छोड़ दिया है
बेआवाज़ आश्वासनों को.
आज ही भेजा है उसने
अक्षरों में लिपटा
दूरगामी सहलाता स्पर्श
इधर-उधर ठूंसकर भरे
गये अछोर समर्थन, अनकहे
दरम्यानी निश्छल एकांत
ढ़ेर सारा अछूता प्यार.
आँखों में उतराने लगी है
स्वप्निल तरलता
हाँ, बधने लगी है मुट्ठी
अब तो
निहत्था मैं भी नहीं.
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