अनुवाद के पिछले क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है कवयित्री समां साबावी की कविता. इस कविता में समां हिंसक विनाश में आहत मानवता के जड़ 'स्टेटिक मोड' को सरल भाषा में बरतती हैं. बरसों के दमन में न्याय, सच, सपने, अपने, सुरक्षा, भविष्य, शांति धुंधला गयी है. वे जानती हैं कि फिलिस्तीनियों के लिए अस्तित्व समय के इस अनिश्चित प्रवाह में डटे रहने की ज़िद है. गौरतलब है कि फिलिस्तीन और इज़राइल के लम्बे संघर्ष व इज़राइल के अवैध अधिग्रहण ने फिलिस्तीनी जनता को अहर्निश त्रासद स्थितियों में जकड़े रखा है.गाज़ा, जहाँ समय अब भी खड़ा है
हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया ...
हमने जीवन को तारीखें देखकर मापना बंद कर दिया है
बहुत पहले से हमारे लिए समय स्थिर हो गया है
हिंसक विनाश और अथाह दुःख ने इस पर विराम लगा दिया है
और इस बर्बादी के बीच मिलनेवाले कुछ शांत क्षणों में
हम 'क्रिसमस' नहीं मनाते, न ही झूठी प्रसन्नता के लिए 'ईद'
' नए वर्ष की शुभाकांक्षा' देकर हम स्वयं को मूर्ख नहीं बनाते
कोई भी अवसर कभी भी हमारा नहीं,
वह तो भविष्य की अनिश्चितताओं से घिरा है
व्यतीत कल ही, हमारा आज है
यहाँ समय जड़ है
और एक ही तारीख़ वर्ष है
जो हमारा जीवन धारण नहीं करता,
न हमारे सम्मिलित दुखों को,
न बचे रहने की कामना को
हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया...
न्याय के ध्वस्त होते ही हमारी घड़ियाँ बंद हो गयीं थीं.
दशको के दमन ने ग्रहण का अँधेरा फैला रखा है
...अब कोई समय की बात नहीं करता
समय की अनुपस्थिति में हम ठहर से गये हैं
हम तुम्हारी तरह जीवन को दिनों से नहीं तौलते
आलिंगनों की ऊष्मा ही हमारे जीवन की वाजिब गणना है.
हमारा मूल्य प्रेमी हृदय की मात्र एक स्पंदन,
हमारा अस्तित्व हमारे होने की ज़िद है.
इसलिए हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें