प्रेम है उसकी पूँजीज्योत्स्ना शर्मा की कविता 'प्रेम है उसकी पूँजी' औरत के जीवन में प्रेम और उसके विसंगत उपादानों की चर्चा करती है. इस कविता को पढ़ते हुए स्त्री का बेढब जीवन आँखों के सामने साकार होने लगता है. उसके प्रेम को पारस्परिकता, साहचर्य, समानता से इतर आत्मत्याग, बलिदान, स्वार्थहीन सम्पूर्ण समर्पण से जोड़ दिया जाता है. नियमित जीवनक्रम, अनुशासित भूमिका में उसका बहुरंगी व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है. वह अंततः अनजानी, अगम्य ही बनी रह जाती है.पूर्वनिर्मित भूमिकाओं की अत्यधिक वांछनाओं ने उसे व्यक्तित्वहीन, अभिव्यक्तिहीन बना दिया है. यह कविता स्त्री के खो जाने के दुःख को व्यक्त करती है.
प्रेम है उसकी पूँजी
जैसे गरीब की पूँजी है ईमान
वो काया को पिघला कर
ढालती है चरखा
दुःख और दहशत की पूनियों से
बुनती है प्रेम का दर्शन
जिसे सब जानते हैं.
करुणामय ईश्वर के बाज़ार में
वो आती है सम्हाले हुए
गरीबी की आन
उसकी पूँजी एक सिफ़र बन जाती है
जिससे वो गुणा होती जाती है
फिर भी संतोष से
मुस्कुराती है उसकी अगाध ममता.
हिसाब के बाद
बार बार आते
अवशिष्ट अंक सी
वो खाते के बाहर छूट जाती है
फिर भी अपना दर्शन भूल नहीं पाती है
यही है उसके प्रेम का इतिहास
जिसे सब जानते हैं.
बाक़ी जो है वो झूठ साबित की गई
एक सचमुच की गरिमा है
कत्ल किये गये जीवन में तड़पती
जीवन के प्रति अपार श्रद्धा है
एक अज्ञात अमृत है जो खप गया
भेड़ियों की डकार में
ये उसकी कविता है
जिसे कोई नहीं जानता.
ये उसकी कविता है
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बेहतर...