फिलिस्तीनी कवि ताहा मुहम्मद अली की कविता 'पेट्रोलियम की नसों में जमा खून' का अनुवाद इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है. आज उनकी एक अन्य कविता का अनुवाद प्रस्तुत है. ताहा की खासियत यथार्थ को महसूस करने की शक्ति और उसे बरतने का निराला ढब है. उनकी सधी भाषा की त्वरा भी कवि के काव्य-विवेक की सूचक है.चेतावनी
शिकार के प्रेमियों,
और शिकार पर आँख गड़ाए नये शिकारियों:
तुम्हारे बन्दूकों को मेरे
सुखों से दूर रखना,
जिनका मूल्य तुम्हारी एक गोली भर भी नहीं
(जो तुम इन पर बर्बाद करोगे)
तुम्हें क्या लगता है
मृग-शिशु के समान
चपल और क्षिप्र,
तीतर के समान हर
मार्ग से गुजरनेवाली,
क्या वह ख़ुशी नहीं, सुख नहीं.
मेरा विश्वास करो:
मेरे सुख का सम्बन्ध
सुख से नहीं है.
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