पिछले क्रम को आगे बढ़ाते हुए पेश है एन्द्रिनी रिच की एक अन्य कविता का अनुवाद ...जीत
भीतरी तहों में कुछ पसर रहा है, हमसे अनकहा
त्वचा के अंदर भी उसकी उपस्थिति अघोषित है
जीवन के समस्त रूप-प्रत्यय नाटकीय स्वार्थों की
सघन झाड़ियों में उलझे मशीनी देवताओं से सम्वाद
नहीं करना चाहते, स्पष्टतः कटे-छटे शरणार्थी
प्राचीन या अनित्य ग्रामों से हमारे अवसरवादी
चाहनाओं में फंसे पगलाकर ढूँढ़ रहे हैं
एक मेजबान एक जीवनरक्षक नाव
अचानक ही वह कला, हम एकटक तकते रहे थे, की बजाय
व्यक्ति चिन्हित किये जा रहे हैं और चर्च की पावन पारदर्शिता
दागदार हो गयी है
क्रूर नीले, बैंगनी बेलबूटों, संक्षिप्त पीले रंग में सनी
एक सुंदर गाँठ.
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