पहली बार अपनी बहुत पुरानी कविता प्रकाशित कर रही हूँ. संकोच के साथ बड़ी दी से मेरी नितान्त गोपनीय किन्तु सहज समरसता को यह कविता व्यक्त करती है. यहाँ दी हैं .मैं हूँ और बीतता बचपन है. इसके साथ वह हरा , मुलायम-सा समय भी है जब आज की जटिलताओं से अनजाने हम सबसे अलग एकसाथ 'केवल बहनें ' हुआ करते थे. और यह हमारी प्राथमिकता थी...आज प्राथमिकता बदली नही, विस्तृत हो गयी है ...
तस्वीरें
नए फ्रेम में लगी अपनी
तस्वीरों को कुछ पल एकटक देखते हुए
मैंने हठात दीदी के कोमल गरम हाथों को
पकड़कर अनायास ही कहा ,
"इन तस्वीरों में हम हमेशा रहेंगे
जिंदा और साथ -साथ ".
ऍन उसी वक्त लगा जैसे हमने पूरी कर दी
हों जीने की सारी जटिल शर्तें ,
साथ -साथ रहने की सभी अनगढ़ मांगें और
जैसे तय कर लिये हों जीवन के ऊबड़-खाबड़
रास्ते झट से.
ऐसी ही अनगिन बातों से अंटे हम बने रहे
मौन, स्तब्ध
गुजरते रहे अनकहे, बोझिल क्षण हमारे बीच
जिन्हें केवल हमने सुना और छोड़ दिया उन्हें
यों ही अनकहा.
कहते कैसे
कि हमने गुजार दिए साथ-साथ कई अनमोल वर्ष
और अब नहीं हमारी गाँठ में इतने वर्ष
जो बनाये जा सके उतने ही अनमोल .
आर्द्र अनुभूतियों को हवा देते हुए मैंने कहा,
"जल्दी हो जाये तुम्हारा ब्याह मेरे
पेशेवर बनाने से पहले ..."
बातूनी दीदी कि बड़ी, कोरो तक पनीली झलमल
करती आँखों ने मानो मेरे ठन्डे व्याकुल स्पर्श को
सहेजा,"हाँ! रहेंगे हम जिंदा और
दोहरे साथ-साथ".
सुंदर कविता और ब्लॉगलेखन के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंbadhai vijaya. behnape par badi pyari kavita hai aur honest bhi .aage ke liye dher sari shubhkamnayein
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता विजया दी....ब्लॉग के माध्यम से ही सही आपसे मुद्दत के बाद संपर्क हो पा रहा है.....कैसी हैं आप...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह कविता।
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कल 29/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूबसूरत भाव हैं इस रचना के ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअनमोल आर्द्र अनुभूतियों को हवा देते हुए
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति