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शनिवार, 19 मार्च 2011

प्रख्यात (अमेरिकी) नारीवादी एंद्रिनी रिच कला के कोस्मेटिक उपयोग के खिलाफ हैं. कला और साहित्य को अलंकरण और सत्तावानो की गुलामी से इतर व्यापक सामाजिक सरोकारों से जोड़ती हैं. आरम्भिक कविताओं में भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति के बावजूद उनकी भाषा में स्त्री सम्वेदना का सहज स्पर्श दिखता है.आगे चलकर लगभग १९६० के करीब उनकी कविताएँ प्रतिरोधी चेतना का सकारात्मक विकास करती हैं.समाज में स्त्री की भूमिका, जातिवाद ,वियतनाम युद्ध जैसे मुद्दों पर लिखते हुए उन्होंने औरत स्थिति व समाज की संरचनागत विषमता के मूल तत्वों को डिकोड किया हैं .ऐसा करते हुए वे अपनी सशक्त भाषा में मान्य व्यवस्थागत अभिरुचियों को तबाह करती चलती हैं.एंद्रिनी की ताकत सच कहने की अकूत शक्ति है. आगे प्रस्तुत है उनकी दो महत्वपूर्ण कविताओं के अनुवाद.
           औरतें 
          मेरी तीन बहनें काली शीशे-सी चमकीली
          लावे की चट्टानों पर बैठी हैं.
          पहली बार, इस रोशनी में, मैं देख सकती हूँ वे कौन हैं.

          मेरी पहली बहन शोभा-यात्रा के लिए अपनी पोशाक सिल रही है.
          वह एक पारदर्शी महिला की तरह जा रही है
          और उसकी सभी शिराएँ देखी जा सकेंगी.
 
          मेरी दूसरी बहन भी सिल रही है,
          उसके हृदय की फांक को जो कभी पूरी तरह नही भरा,
          अंततः, वह आशान्वित है,उसकी छाती का यह कसाव ढीला होगा.

         मेरी तीसरी बहन लगातार देख रही है
         समुद्र में सुदूर पश्चिमी छोर तक फैली गाढ़ी-लाल पपड़ी को.
         उसके मोज़े फट गये हैं, फिर भी वह सुंदर है.


        हमारा समूचा जीवन 
         हमारा समूचा जीवन जायज़
         मामूली झूठों का अनुवाद हैं.
    
         और अब असत्यों की गांठ स्वयं को
         ही निरस्त करने के लिए कुतर रही है

         शब्द ही शब्द को डँस रहे हैं
  
         सारे अभिप्राय जलती मशाल की
         लपटों में बदरंग हो गये हैं

         वे सभी बेजान चिट्ठियां
         जो उत्पीड़कों की भाषा में अनुदित थीं

         डॉक्टर को अपनी पीड़ा बताने की कोशिश
         करते अल्जीरियन की भांति हैं
         जो अपने गाँव से हल्के मखमली
         कम्बल में लिपटा

        सम्पूर्ण दग्ध देह के साथ दर्द से
        घिरा चला आया है
        और उसके पास बयान के लिए कोई शब्द नहीं है

        सिवाय खुद के.
          

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