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शुक्रवार, 3 मई 2013

आप, डरिए मत दीदी..सुख ही सुख है..

आज मैं फिर मिली छोटी बहन के समान रागिनी से. वह ऐसे लोगों की श्रेणी में आती है जिनसे बार-बार बात करने, मिलने का मन हो आए. गाड़ी-बाड़ी(घर)-साड़ी की लफ़्फाजियों से दूर सामान्य-सी बेतकल्लुफ़-सी लड़की. वह हर उस दूसरी लड़की की तरह है जो प्रेम, प्रेमी, पति, ससुराल के अनगिनत सपनों से भरी रहती हैं. मेरे लिए बेहद परेशान. हमेशा कहती है, इसीलिए दीदी पहले से ही किसी को पसंद कर लेना चाहिए. बहुत सारे झंझट खत्म हो जाते हैं. माँ-पिता के भी और अपने भी. फिर हम (माँ भी इस गैंग में हैं) खूब हँसते हैं.
जिससे उसने बेइन्तहा प्यार किया उसी से विवाह करने की बेइन्तहा ज़िद के साथ अड़ी रही. सफल भी हुई. प्रेम की परिणति शादी में हो जरूरी नहीं, प्रेम शादी के लिए किया जाए-यह भी जरूरी नहीं. लेकिन जो प्रेम करते हैं, आगे संबंध को बनाए रखना चाहते हैं, विवाह करना चाहते हैं- ऐसे लोग एक-दूसरे का साथ दे सकें यह भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं. वह और उसका पति अलग-अलग राष्ट्रीय बैंकों के ऊँचे पद पर कार्यरत हैं. वह भी अलग-अलग शहरों में. शादी के 2-3 माह बाद ही मिलने के दौरान उसने गर्भवती होने की सूचना दी. कहा भी कि उसे थोड़ा और समय लेना चाहिए था. विवाह के बाद अपनी जड़ों से उखाड़ दी गई लड़की के लिए समझौता और अनुकूलन की थर्ड डिग्री का बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है. पूछना चाहा कि प्रेमी से पति बने व्यक्ति से भी क्या सुरक्षा के उपायों पर बात नहीं की जा सकती. कभी मित्र रह चुका इंसान इतना करीबी तो होता ही होगा. लेकिन उसने अपने वहीं पुराने धड़ाधड़ अंदाज में बताना जारी रखा कि सास को मालूम था कि शादी के बाद वह ससुराल में पीरियड हुई थी वरना उसे सासू माँ को समझाना मुश्किल होता कि पति से ये नजदीकी वस्तुतः विवाह की पावन अग्नि के चारों तरफ फेरे लेने के बाद की स्वाभाविक योजना का ही हिस्सा भर है. ससुराल के सम्मान को कोई आँच नहीं आई है. सब भगवान की कृपा है, बचा लिया उसने- रागिनी ने उल्टी चल रही साँसों को राहत की बैशाखी थमा दी. इस तुरंता प्रेग्नेंसी ने तो मरवा ही डाला था! लगा जैसे औरत के लिए प्रेम-विवाह भी भारतीय परिवार के परम्परागत माहौल में तयशुदा विवाह के ही समान पावन अग्नि की परीक्षा का वो ऑप्शनल पेपर हैं जो आपको लेना है और पास भी करना है.
बेहद सुंदर दिख रही रागिनी को चिंता इस बात की है कि लोगों ने कहना शुरु कर दिया है कि उसे लड़की होगी. अगर लड़की हुई तो सास का दबाव रहेगा कि दूसरे के लिए ट्राई करो. जिठानी के कई बार गर्भपात करवाने, अपराधबोध से ग्रसित होने के किस्से भी भरे पड़े हैं उसके पास. मैंने कहा, नहीं तुम तय करोगी क्या करना हैं. अपनी देह, सामर्थ्य और इच्छा से जुड़े फैसले तुम्हें करने होगें. तुम जन्म दोगी, तुम देख-रेख करोगी, तुम संभालोगी तो तय दूसरे कैसे कर सकते है? फिलवक्त वह अडिग नज़र आती है..आगे तो उसके भगवान संभाल ही लेंगे.
इस बार वह हप्ते-दस रोज़ के लिए ससुराल गई, किसी तरह एक दिन के लिए मायके जा पाई. पूरे रास्ते सास के फोन आते रहे कि कल जरूर चली आना. कहने लगी, दीदी इतना गुस्सा आ रहा था कि पलट कर ससुराल चली जाऊँ. ऐसे जाकर भी क्या होगा? मायके में भी पूरे दिन मिलने वालों का ताँताँ लगा रहा. माँ से मन भर बातें भी न हो सकीं और दूसरे दिन फिर वही सासू माँ ..
सासरे में मिलने वालों के आगे न चाहते हुए भी उसे बत्तीसी दिखानी थी, नहीं तो सुनना पड़ता बहू हँसमुख नहीं, कमाती है इसलिए घमंडी हो गई है. घर आई सासू-सखियों के सवालों को वह सुन तो सकती थी लेकिन जवाब तो सासू माँ और जिठानी ही देती थी- "अरे! बड़ी खुसमिजाज है तभी तो कलकत्ता में अकेले रह लेती है" और उसे लगता- "मुझे भी तो बताने दीजिए कि कलकत्ते में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है". यह बताते हुए वह फिर हँसती है. उसके लिए दुनिया का सबसे बड़ा दुख न बोल पाना है. निश्चित रूप से इस समय वह दुखी रही होगी.
उसे निकले पेट के साथ घर के कामों में हाथ बँटाना था, सास मना करती हैं पर बहू-धर्म सर्वोपरि है. आराम मिलने की बात पर हँसते-ठुनकते हुए कहती है हाँ मिला ना आराम, जो पैर सूज कर बाद में नार्मल हो जाता था..अब सूजा ही रहता है. दीदी, फूलने-पिचकने की टेंशन खत्म. खटाक से किन्हीं स्मृतियों में जाकर लौटती है- जानती है दी, माँ के यहाँ एक दिन के लिए गई थी ना, इतनी राहत महसूस की कि क्या कहूँ..
मैं केवल उसे सुनने में लगी रही. लगा वो बहुत-बहुत बोलना चाहती है. मुझे सुनना चाहिए. दूसरी ओर समझ में नहीं आ रहा था कि इस सब में उसके प्रेमी-पति(देव) कहाँ बिला गए हैं? रागिनी के इस समूचे ऊहापोह, बनने-बनाने, सिद्ध कर देने की उठापटक में पति की जगह कब परिवार और उसकी अजस्त्र तानाशाही ने ले ली थी, शायद उसे पता भी नहीं. लेकिन वह भविष्य के प्रति आशाओं से लबरेज़ हैं और मुझे अनावश्यक(?) भय से बचाने के लिए कहती है-
ससुराल तो ससुराल ही होता है..
आप, डरिए मत दीदी..सुख ही सुख है..

8 टिप्‍पणियां:

  1. kitni sari ldkiyan, kya kya hi krti, apne ghar ko bchane, kintu, ydi vo aarthik rup se azad nhi h, to use sunna hi pdta h, ki, tu to, hmara paisa kha rahi h, uske bad sbkuchh ek pal me khtm ho jata h, jise brson tk ynhi, sunna pdta ho, uska kya hal hota h, jb vo swabhimani ho, use ynhi lgta h, ki jo mai kha rahi hu, uska ada bhi to kr rahi hu, tumhara ghar v bchche sambhal kr

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  2. aur likhu, bahut musibat h, ganvon me bahut chhoti bchchiyon ka vivah ho jata h, jinhe sari sambhalna bhi nhi ata, unhe hath bhar ghunghat me bhej dete h, sasural, aur kahte h, jaisa samajh me aye kr lena. bechari samjhti hi nhi, to kya kregi, pti chahta h, vo esa kre jaise ki jabalpur ki kushal khiladi krti h, ve shabd sambhav nhi, chahe vo sbkuch hotal ke sare log dekhe, pura staf hi mje le, pti ko inse kya, ye sb kisi bhi balika ko dahsat se bhar deta h, uske bad sari jindgi grasthi ki yantrik nirvah ke siva kuchh nhi hota

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  3. ek bus me ek balika mili thi, jise uski nani ma le ja rahi thi, nagpur, vo bachchi bathroom gyi, to raste me hi behosh ho gyi, use jis mama ne uthake laya, to pta chla ki, vo mama sga nhi tha, esi jgh se pkde tha, dekhkr kleja kanp gya, mujhe lga, is bchchi ke sath, nagpur me kuchh achcha nhi hoga, vo nirdand ese logon ke atichar me fns chuki thi, jise ki, uske mata-pita ke nhi hone se shi lutne atur the, vo histiria ki mrij apne upr ane wali apdaon se nirvikar thi, kyunki, uski mansik halat esi nhi thi. nagpur me kitni ldkiyan v aurten un atyacharon se dr kr sdkon pr bhagti firti h, unhe koi nhi bchata

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  4. sach, sasural to behal kr deta h, kisi ko vnha dya hi nhi ati, kintu ldki ko sasural se hi to age ka rasta milta h, vo akhir kb tk, akele is nirmohi duniya ko jhele, akele. ghar, pti ke bad bchcha use nye sire se jindgi ki shuruvat krne ki urja deta h, kyunki ynhi se vo judti h, apne surkshit bhavishay se. ydi ldki ka vivah na ho, to tb vo behad akeli ho jati h, jb sb baten kr apne kaksh me kaid ho jate h. vivah kr grasthi sanjona, apne aapko hi to, ek bar firse sanjona h

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  5. vivah se kitna bhi dukh mila ho, kitni bar apne ko sambhalna tk muskil tha, iskadr dipression me chali jati rahi. kintu jb beta sahara deta h, to pta chalta h, ki sb apni rah chal dete h, apni santan hi hme sambhalti h. behad, jaruri h, ldkiyon ke liye, vivah kr ghar bsana

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